15 August
August 15th, 2006
दरवाज़े पर गारà¥à¤¡ ने à¤à¤• अपरिचित चेहरा देखने पर कà¥à¤› सवाल पूछे और सनà¥à¤¤à¥à¤·à¥à¤Ÿ होने पर गाड़ी अनà¥à¤¦à¤° ले जाने दी। मà¥à¤à¥‡ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ है कि मेरे समय में गारà¥à¤¡ केवल नाम-मातà¥à¤° होता था। उसको à¤à¤• अमरूद दे दो तो खà¥à¤¦ ओसामा-बिन-लादेन को अनà¥à¤¦à¤° जाने की अनà¥à¤®à¤¤à¥€ दे देता। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि धà¥à¤µà¤œà¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¤£ में अà¤à¥€ à¤à¥€ आधा घणà¥à¤Ÿà¤¾ बचा था तो मैने सà¥à¤•à¥‚ल का à¤à¤• चकà¥à¤•à¤° लगाने का निरà¥à¤£à¤¯ लिया। जिस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« रूम में पहले जाने में पसीना आता था और अनà¥à¤¦à¤° पहà¥à¤šà¤¤à¥‡ ही अनायास ही हाथ पीछे और चाल सीधी हो जाती थी, वो थोड़ा निरà¥à¤œà¥€à¤µ सा लगा। à¤à¤¸à¤¾ नहीं है कि अनà¥à¤¦à¤° घà¥à¤¸à¤¤à¥‡ ही कà¥à¤› नज़रे मà¥à¤ पर नहीं गड़ गयी थीं लेकिन आज वो नज़रे मà¥à¤à¥‡ टटोल नहीं रही थीं। आज उनमे वो सवाल नहीं था कि 'बेटा आज कà¥à¤¯à¤¾ घपला किया'। अगर उनमे कà¥à¤› था तो बस à¤à¤• रà¥à¤šà¤¿à¤¹à¥€à¤¨ कौतूहल। पà¥à¤°à¤¿à¤¨à¥à¤¸à¤¿à¤ªà¤² का कमरा वैसे का वैसा ही था और सà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿà¤¸ फीलà¥à¤¡ में à¤à¥€ अधिक बदलाव नहीं था अलबतà¥à¤¤à¤¾ उसके चारो ओर की दीवारें ऊà¤à¤šà¥€ हो गयी थी (हमारे कà¥à¤²à¤¾à¤¸ के बचà¥à¤šà¥‡ उसको फाà¤à¤¦ फाà¤à¤¦ के मूवी देखने खूब जाते थे)। फिज़िकà¥à¤¸ लैब वगैरह में L.C.D पà¥à¤°à¥‹à¤œà¥‡à¤•à¥à¤Ÿà¤° लग गये हैं लेकिन वही ३० साल पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ काà¤à¤š की शीशियां जिनके लेबल आज से ६ साल पहले ही धà¥à¤§à¤²à¥‡ पड़ गये थे, वही पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ चारà¥à¤Ÿ जिनको शायद ही कोई बचà¥à¤šà¤¾ पढ़ता हो कà¤à¥€, वही आरामतलबी टीचरà¥à¤¸ और खड़ूस लैब-असिसà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ट।
आठबजने में १० मिनट पर मौरनिंग असेमà¥à¤¬à¤²à¥€ की तयà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆà¤‚ तो मà¥à¤à¥‡ वो दिन याद आ गये जब à¤à¤• साल बीतने का अनà¥à¤à¤µ सिरà¥à¤« पà¥à¤°à¤¾à¤ˆà¤®à¤°à¥€ के बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ से हर साल बढ़ती दूरी के रूप में होता था। बारहवी कà¥à¤²à¤¾à¤¸ और हममे और उन नादानों में १० लाईनों का फासला! पà¥à¤°à¤¿à¤‚सिपल के हाथों धà¥à¤µà¤œà¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¤£ हà¥à¤† और साथ में राषà¥à¤Ÿà¥à¤° गान। मैं ये कà¤à¥€ नहीं समठपाया कि मेरे लिये राषà¥à¤Ÿà¥à¤° गान का महतà¥à¤µ पहले की बनिसà¥à¤ªà¤¤ अब इतना ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हो गया है। पहले जिसे मैं सिरà¥à¤« à¤à¤• गीत और ज़िमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ समà¤à¤¤à¤¾ था, अब उसके मायने कहीं दिल से जà¥à¤¡à¤¼ गये हैं। और आज जब मौका सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ का था और सामने तिरंगा लहरा रहा था, मैं अपने हाथों पर खड़े हो रहे रोओं की सरसराहट साफ महसूस कर रहा था। हवाओं मे गूंजते 'ठमेरे वतन के लोगों' के सà¥à¤µà¤° मेरे कानों में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤§à¥à¤µà¤¨à¤¿à¤¤ हो हो कर दिल की धड़कनों को उकसा रहे थे। मà¥à¤à¥‡ नहीं पता की और लोग à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ महसूस करते हैं कि नहीं लेकिन मैं साफ समठरहा था कि उस दिन कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ नेहरू अपने आà¤à¤¸à¥‚ नही रोक पाये थे।
कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अनà¥à¤¤ में पà¥à¤°à¤¿à¤¨à¥à¤¸à¤¿à¤ªà¤² साहब की à¤à¤• उबाऊ सà¥à¤ªà¥€à¤š (कà¥à¤› चीज़ें कà¤à¥€ नहीं बदलतीं!) और फिर मिषà¥à¤ ान वितरण (२ लडà¥à¤¡à¥‚!)। वापस आते समय सोच रहा था कि उन दो लडà¥à¤¡à¥‚ओं वाले समय के लिये आज मैं कà¥à¤¯à¤¾ नहीं दे सकता।
बहà¥à¤¤à¥ अचà¥à¤›à¤¾ लगा। गलत बोल रहें थे की बसॠआखरी पैरा अचà¥à¤›à¥€à¤‚ थी, मà¥à¤à¥‡ तो पूरा बà¥à¤²à¥‹à¤—ॠअचà¥à¤›à¤¾ लगा।
इतà¥à¤¨à¤¾ लिखने मे हीं पसीना आ गया। या तो मà¥à¤à¥‡ रोजॠहिंदी मे लिखना चाहिये या फोनेटिकॠकीबोरà¥à¤¡ का उपयोग करना चाहिये।
वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¤°à¤£ के बारे मे फिर कà¤à¥€...
कौशिक बाबू, à¤à¤• गà¥à¤²à¥à¤Ÿ होने पर à¤à¥€ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ हिनà¥à¤¦à¥€ बहà¥à¤¤ सराहनीय है। कम से कम उन लोगों से तो हज़ार गà¥à¤¨à¤¾ अचà¥à¤›à¥€ है जो दिखावे के मारे अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ à¤à¤¾à¤·à¤¾ को हिनà¥à¤¦à¥€ की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ (या तेलà¥à¤—ू की à¤à¥€) में à¤à¤• सà¥à¤Ÿà¥‡à¤Ÿà¤¸ सिमà¥à¤¬à¤² की तरह पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करते हैं और 'धोबी का कà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ न घर का ना घाट का' की कहावत को चरितारà¥à¤¥ करते हैं। तà¥à¤® मà¥à¤à¥‡ अपनी हिनà¥à¤¦à¥€ की पकड़ से पहले à¤à¥€ चकित करते थे और आज à¤à¥€!
@ankit: Itni khoobsurat blog maine bohot din baad padha hai aur aashcharya is baat ki hai ki maine khud aaphi ke blog ke baare mein kuch dinon pehle yehi baat kahi thi. Bohot khoob aur Jai Hind!
@aabeirah: वो कहते हैं ना, 'खूबसूरती देखने वाले की नज़रों में होती है' :-)। वैसे बहà¥à¤¤ शà¥à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ इस नवाज़िश के लिये।